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ताज महल

जहाँगीरी महल (आगरा किला)

आगरा किला

फतेहपुर सीकरी

अकबर का मकबरा (सिकन्दरा)

मरियम का मकबरा

दीवान ए आम

ताज महल सूर्यास्त के समय

विश्व विरासत स्मारक

फतेहपुर सीकरी (1986), उत्तर प्रदेश


फतेहपुर सीकरी विंध्य पर्वतमाला के ऊपरी छोर पर स्थित, लाल बलुए पत्थर से निर्मित, फतेहपुर सीकरी स्मारक समूह मूलतः एक विशाल प्राकृतिक झील के परिवेश में बसाया गया था। संस्कृत साहित्य एवं परम्परा में सीकरी का उल्लेख महाभारत कालीन है जिसमें पाण्डवों के राजसूय यज्ञ के अवसर पर सहदेव के दक्षिण विजय अभियान के सन्दर्भ में सैक्य के नाम से हुआ है जिसका अर्थ जल से सिंचित प्रदेश है। इसी से निष्पादित होकर सीकरी शब्द बना होगा।

जल से ंिसंचित, दस क्षेत्र में स्थित घने जंगलों तथा शिकार योग्य पर्याप्त जंगली पशु-पक्षियों की उपलब्धता के कारण आदिमानव ने इस स्थल को अपने आवास के लिये उपयुक्त पाया। झील के किनारे-किनारे शैल चित्र और पाषाण युग के औजार भी पाये गये हैं। गैरिक मृदभांड परम्परा (लगभग 2000 ई0पू0) और चित्रित धूसर मृदभांड परम्परा (लगभग 1200 से 800 इंसा पूर्व) के अवशेष भी यहाॅ से प्राप्त हुए हैं।

यहाॅं स्थित वीर छबीली टीला के उत्खनन से प्राप्त जैन सरस्वती (1010 ई0) की प्रतिमा पर उत्कीर्ण अभिलेख में संकारिया स्थान का उल्लेख है जो सैक्य से साम्य रखता है। उत्खनन से प्राप्त दसवीं और ग्याहरवीं शताब्दी की जैन मूर्तियों से विदित होता है कि यहाॅं पूर्व ऐतिहासिक काल से निरन्तर आवादी थी। इस स्थान पर राजपूतों के जिस शाखा का शासन था वह भी सिकरवार ही कहलायी, यह नाम भी सैक्य-सेकरिया के क्रम में आता है। यह स्थल व्यापारिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक क्रिया-कलापों का केन्द्र था, जहाॅं से अनेक महत्वपूर्ण शहरों के प्रमुख मार्ग उपलब्ध थे।

खानवा के युद्व के दौरान बाबर यहाॅं 1527 ई0 में आया था। उसके आत्मकथा में वर्णन है कि खानवा युद्व की विजय के उपलक्ष्य में उसने यहाॅं एक जल महल, बावड़ी एवं उद्यान बनवाया तथा इस स्थल को सीकरी के नाम से ही उल्लेखित किया है।

अकबर (1556 से 1605 ई0) ने 13 वर्षों अर्थात 1572 से 1585 तक सीकरी से ही राज्य चलाया। उसके दरबारी इतिहासकार अबुल-फजल ने लिखा है कि यहाॅं स्थित पहाड़ी पर एक गुफा में सूफी सन्त शेख सलीम चिश्ती रहते थे। बादशाह, सूफी सन्त का बड़ा सम्मान एवं आदर किया करते थे। सूफी सन्त के आशीर्वाद से ही अकबर के उत्तराधिकारी का जन्म 1569 ई0 में हुआ था जिसका नाम सूफी सन्त के सम्मान में सलीम रखा गया था। अबुल-फजल ने लिखा है कि वहाॅं बादशाह के रहने के लिए बड़े-बड़े महल और जनता के लिए मकान बनवाये गये थे। फलतः यह स्थल एक बड़े शहर में परिवर्तित हो गया, जिसमें सुन्दर महल, खनकाह, मदरसे, हम्माम आदि थे। वहाॅं एक पक्का बाजार बस गया था, जिसके आसपास सुन्दर बाग लगाये गये थे। जून 1573 ई0 में अकबर की गुजरात विजय के उपलक्ष्य में इस स्थल को फत्हपुर का नाम दिया गया और धीरे-धीरे व्यवहार में यह फतेहपुर सीकरी के नाम से विख्यात हो गया। गुजरात विजय के उपरान्त बुलन्द दरवाजे का निर्माण दरगाह परिसर में हुआ जो एशिया का सबसे ऊॅंचा प्रवेश द्वार है। अंग्रेज यात्री राफफिच 1585 ई0 में फतेहपुर सीकरी आया था और उल्लेख किया है कि आगरा और फतेहपुर दो अत्यधिक जनसंख्या वाले महत्वपूर्ण शहर हैं जो लंदन से थोड़ा बड़ा है, हालांकि 1585 ई0 में अकबर एवं उसके दरबारी फतेहपुर सीकरी छोड़कर सदा के लिए लाहौर चले गये। राजनीतिक गतिविधियों के कारण उसने नई राजधानी लाहौर में बसाई। जहाॅंगीर यहाॅं तीन महीने तक रहा और खुर्रम का 28वाॅं भव्य जन्म उत्सव भी 1619 ई0 में मनाया गया था।

अकबर के जीवन का यह सर्वाधिक सृजनात्मक काल था, जिसमें सभी मुगल संस्थानों जैसे इबादतखाना (1576 ई0), दीन-ए-इलाही (1582), झरोखा-दर्शन (1572-85)। सुलहकुल के सिद्वान्त, भारतीय कलाओं और साहित्यों को उदार संरक्षण देने की नीति की नींव रखी गयी थी। यहाॅं अकबर ने विविध हस्तकलाओं के कारखाने स्थापित किये जिनमें रेशमी, ऊनी और सूती कपड़े, दरी, गलीचे, सोना-चाॅंदी और अन्य धातुओं के सामान, जेवरात चमड़े, लकड़ी हांथीदांत और पत्थर की वस्तुऐं एवं चित्रकारी के कार्य होते थे। राजकीय संरक्षण में ऐसा पहली बार हुआ था।

सीकरी, मुगलों द्वारा सुनियोजित बसाया गया पहला शहर है। पहाड़ी से क्रमानुसार उतरते हुऐ तलो पर तीन मुख्य परिसर बनाये गये हैं। सबसे ऊपर, दरगाह परिसर है जिसमें जामा-मस्जिद, बुलन्द दरवाजा और शेख सलीम चिश्ती का मकबरा है। उसके नीचे के तल पर षाही परिसर है जिसमें रनिवास, महले-इलाही, शाही-बाजार, मीना-बाजार, बैठक और एक बाग है। सबसे नीचे का तल आम परिसर है जिसमें जलमहल, ख्वाबगाह, शाही कुतुबखाना, अनूप तालाब, एक स्तम्भ प्रासाद, चैपड़ और दीवान-ए-आम है। इन तीनों परिसरों की इमारतें सही दिशा में उन्मुख हंेै जिनके द्वार पूर्व या उत्तर की ओर खुलते है। प्रत्येक परिसर पंक्तिबद्ध है जिनके बीच के खुले स्थान को सुरक्षा के लिए ऊँची दीवारों से घेरा गया है जो परदे का भी काम करती थीं। वर्षा के जल को संचय कर जलापूर्ति हेतु उपयोग में लाने के लिए पानी की समुचित व्यवस्था की गयी थी, जिसे ''प्राचीन जलसंचय व्यवस्था'' के रुप में देखा जा सकता है। वैज्ञानिक पद्धतियों के समावेश के कारण फतेहपुर सीकरी को एक व्यवस्थित नगर-योजना के अनुसार, विकसित रूप से बसाया गया था। इनके अवलोकन से ज्ञात होता है कि ये सभी इमारतें 1572 से 1585 के मध्य बनी थीं। संगतराशों की मस ्जिद (लगभग 1562 ई0) तथा रंग महल (1565-70) पहले के निर्मित हैं। 1573 ई0 में गुजरात विजय के उपलक्ष्य के उपरान्त जामा-मस्जिद के दक्षिण में बुलन्द दरवाजा बनाया गया था। ये सभी इमारतें लाल बलुए पत्थर से समतल पद्धति पर निर्मित परिसरों में खम्भे/स्तंभों, अलंकारिक महराबों, ताड़ों, छज्जों, झरोखों और छतरियों का प्रयोग हुआ है। भारतीय कला से प्रभावित कुछ इमारतें मन्दिर सी लगती है। स्थानीय कारीगरों के साथ मालवा, राजस्थान और गुजरात से बुलाये गये शिल्पकारों ने भी अपना योगदान दिया फलतः फतेहपुर सीकरी की कला, सीकरी की कला न होकर सम्पूर्ण भारत की कला के रूप में पहचानी जाने लगी। यह कला रचनात्मक, बहुमुखी और समन्वित भारतीय शेैली, देश की मिलीजुली संस्कृति की देन है।

महलों में जलापूर्ति के लिए समुचित व्यवस्था की गयी थी। पहाड़ी के दोनों तरफ बावडि़यों में जल सयन्त्र लगाकर, बैलों के द्वारा पानी ऊपर चढ़ाया जाता था और नालियों के माध्यम से महलों में पहँुचाया जाता था। यहाँ पानी का आभाव नहीं रहा। फतेहपुर सीकरी के आस-पास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 93 संरक्षित स्मारक है। यूनेस्को ने 1986 में फतेहपुर सीकरीे को विश्वदाय स्मारक घोषित किया है। फतेहपुर सीकरी के मुख्य स्मारकों में प्रासाद परिसर, दरगाह परिसर, प्रवेश द्वार के साथ शहर की दीवार (सिटी वाॅल), हमाम, खजाना, जलकल, तालाब एवं कुएँ, संभ्रान्त व्यक्तियों के घर, सराय एवं मीनारों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

पर्यटक सूचना:

स्मारक के खुलने का समय- सूर्योदय से सूर्यास्त तक।
प्रवेश शुल्क

(15 वर्ष से कम आयु वाले के लिए निशुल्क प्रवेश )

भारतीय एवं सार्क व बिमिस्टिक देशों के पर्यटकों के लिए:
Total 20/- (भा० पु० सं ० रू ० 10 /- आ ० वि ० प्रा ० द्वारा पथकर शुल्क रू० 10 /-)

विदेशी पर्यटक के लिए
Totalरू० 260/- ( भा० पु० सं ० रू ० 250 /- आ ० वि ० प्रा ० द्वारा पथकर शुल्क रू० 10 /-)

(नोट : वे विदेशी पर्यटक जो आ0वि0प्रा0 का पथकर टिकट 500/- का आगरा के किसी स्मारक से खरीदते हैं उन्हें उसी दिन आगरा के अन्य स्मारकों पर पथकर टिकट खरीदने की आवश्यकता नहीं है।

शुक्रवार को आ0वि0प्रा0 कोई पथकर शुल्क नहीं लेता है।

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स्मारक वीथिका


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